काग़ज़ी नाव चलाते रहे हम पानी पर दिल को मा'मूर किया ग़म की निगहबानी पर मैं तड़प जाता था कल जिन की परेशानी पर अब वही हँसते हैं देखो मिरी वीरानी पर अब किसी बात पे हैरानी नहीं होती मुझे लोग हैरान हुआ करते हैं हैरानी पर हम पे आसानी कहाँ खुलती है आसानी से फ़ौक़ियत देते हैं मुश्किल को ही आसानी पर मुम्तहिन 'इश्क़ के अब अहल-ए-हवस हैं शायद पूरे नंबर नहीं मिलते हमें नादानी पर हार कर दिल जिसे सब सौंप दिया था 'आमिर' वो भी राज़ी न हुआ दिल की जहाँबानी पर