कहाँ जाएगा दर्द उन की जुदाई का ख़फ़ा हो कर मिरे दिल से निकल कर मेरे पहलू से जुदा हो कर जनाब-ए-शैख़ मस्जिद में न बैठें पारसा हो कर बक़ा हासिल करें उस की मोहब्बत में फ़ना हो कर तअ'ज्जुब है बुतों को बात करना भी नहीं आता ख़ुदाई में ख़ुदाई करने बैठे हैं ख़ुदा हो कर मैं वो हूँ सख़्त जो उफ़ भी न निकलेगी मिरे मुँह से जफ़ाओं पर जफ़ाएँ जिस क़दर तू चाहता हो कर बजा कहते हैं जो कहते हैं तुझ को यार-ए-हरजाई कि तू रहता है सब के दिल में सब का आश्ना हो कर मुसीबत में रहा करते हैं जो भी दाना दुनिया में उन्हीं को पीस्ता है चर्ख़-ए-ज़ालिम आसिया हो कर तुम्हारे हम हमारे तुम तुम्हें क्या वास्ता इस से अदू के आश्ना क्यूँ हो हमारे आश्ना हो कर सर-ए-महफ़िल जो मुझ को देखते हैं वो कन-आँखियों से छुपी बैठी है शोख़ी उन की आँखों में हया हो कर सहर तक उस के सदमों से हो जाँ-बर ग़ैर मुमकिन है शब-ए-फ़ुर्क़त मिरे घर आई है मेरी क़ज़ा हो कर कहाँ तक शौक़-ए-नज़्ज़ारा है बे-ख़ुद हो के ऐ 'साबिर' पड़ा हूँ मैं किसी की रहगुज़र में नक़्श-ए-पा हो कर जनाब-ए-दिल की बातों में न आना देख ऐ 'साबिर' ये हज़रत राह-ए-उल्फ़त में हैं रहज़न रहनुमा हो कर