कहा ख़्वाब ने मैं अधूरा रहूँगा सहर तक मगर बस मैं तेरा रहूँगा कि जब तक रहेगी यूँ कच्ची ये मिट्टी मैं हर रोज़ पैकर बदलता रहूँगा हो जाए न वो भी कहीं दूर मुझ से अगर उस को मैं अपना कहता रहूँगा किसी दिन ये साया भी गल जाना है गर यूँही धूप में मैं जो चलता रहूँगा मुझे उम्र ने है ठगा किस तरह से मुझे तो लगा था मैं बच्चा रहूँगा सफ़र ज़िंदगी का थकाता बहुत है मैं हर मरहले पर ठहरता रहूँगा मोहब्बत का सौदा है घाटे का सौदा मिरी हो न हो तू मैं तेरा रहूँगा सुनो 'अहद' कोई तख़ल्लुस नहीं है मेरा अहद है मैं निभाता रहूँगा