कहाँ किसी का बनाया हुआ बनाते हैं नया बनाते हैं जब हम नया बनाते हैं किसी का नक़्श बनाते हैं लौह-ए-दिल पर हम किसी का अक्स सर-ए-आईना बनाते हैं नया बनाने की हसरत कभी नहीं मरती नए सिरे से नए को नया बनाते हैं मैं इक ज़मीन हूँ अमन-ओ-अम्मां की मुतलाशी मिरे अज़ीज़ मुझे कर्बला बनाते हैं हमारी दश्त-नवर्दी को गुमरही न समझ भटकने वाले नया रास्ता बनाते हैं कहीं भी जाएँ किसी शहर में सुकूनत हो हम अपनी तर्ज़ की आब ओ हवा बनाते हैं ज़मीनें तंग हुई जा रही हैं दिल की तरह हम अब मकान नहीं मक़बरा बनाते हैं ''तलब'' जो लोग क़नाअत-पसंद होते हैं वो ज़िंदगी को कहाँ मसअला बनाते हैं