कहाँ तक जाओगे नज़रें चुरा कर तुम्हें रक्खूँगा आँखों में छुपा कर तुम्हारे हाथ भी तो जल गए हैं मिला क्या तुम को मेरा घर जला कर ख़रीदारों में जब कोई नहीं है मिला क्या आप को क़ीमत बढ़ा कर यही घर था बुज़ुर्गों की निशानी बहुत ख़ुश था इसे विर्सा में पा कर यक़ीनन आएँगे वो इस तरफ़ भी मैं बैठा हूँ चराग़-ए-दिल जला कर तुम्हें 'नश्तर' से मिलना है तो मिल लो उधर बैठे हैं मेरा दिल दुखा कर