कहाँ वो सीम-तनाँ हैं कहाँ वो गुल-बदनाँ अज़ीज़-अज़-दिल-ओ-जाँ है हदीस-ए-लाला-रुख़ाँ ये हम से पूछो जलाल-ओ-जमाल क्या शय है हमारे गिर्द रहा है हुजूम-ए-माह-वशाँ मिरी निगाह को है दीद की कहाँ फ़ुर्सत हैं यूँ तो जल्वे ही जल्वे फ़ज़ा में रक़्स-कुनाँ सुकूँ है कार-गह-ए-ज़ीस्त में कहाँ यारो कशाँ-कशाँ लिए फिरती है गर्दिश-ए-दौराँ यहाँ तो साँस भी लेने में एहतियात है शर्त ब-क़ौल 'मीर' ये है कार-गाह-ए-शीशा-गराँ 'हबाब' अपने वतन से तो दूर हूँ लेकिन निगाह में हैं सभी दोस्तान-ए-ज़िंदा-दिलाँ