कहाँ ये ओस नहीं आफ़्ताब की ज़द में ज़माना आज भी है इंक़लाब की ज़द में ज़ुहूर-ए-ज़ाविया-ए-क़ाइमा से है साबित ये काएनात है इल्म-उल-हिसाब की ज़द में अगरचे उन की तसल्ली में है यक़ीं शामिल दिल-ए-हज़ीं है मगर इज़्तिराब की ज़द में मैं अपने नाला-ए-बे-इख़्तयार के क़ुर्बां जो नग़्मा बन के न आया रबाब की ज़द में वो दश्त जिस में कि दहशत है बे-कराँ 'साएब' वो दश्त है दिल-ए-वहशत-मआ'ब की ज़द में