कहता रहे ज़माना गुनहगार ज़िंदगी कुछ लोग जी रहे हैं मज़ेदार ज़िंदगी किरदार अपना अपना निभाते हैं सब यहाँ समझो न तुम किसी की है बे-कार ज़िंदगी इक वक़्फ़ा-ए-अजल भी तो आता है दरमियाँ चलती नहीं किसी की लगातार ज़िंदगी आगे निकल चुके थे हम अपने वजूद से फिर भी हुई न कम तिरी रफ़्तार ज़िंदगी रस्ते कई हसीन निकलते जहाँ से थे लाई थी ऐसे मोड़ पे इक बार ज़िंदगी है ज़िंदगी से शिकवा उन्हें भी बहुत 'फ़रोग़' हिस्से में जिन के आई है गुलज़ार ज़िंदगी