कही जो हम ने ग़ज़ल इक ग़ज़ल के चेहरे पर चढ़ाई तेवरी उस ने मचल के चेहरे पर हमारे शहर में कुछ दिन गुज़ार कर देखो उदासी रक़्स करेगी उछल के चेहरे पर बढ़ाता जाऊँगा हर चंद रौनक़-ए-मक़्तल मैं चल पड़ा हूँ लहू अपना मल के चेहरे पर तलाश करते हैं वो आज अपने चेहरे को जो फिरते रहते थे चेहरे बदल के चेहरे पर ख़िज़ाँ बहार की मसनद पे आ गई हाए नक़ाब कर लिया उस ने सँभल के चेहरे पर फ़ज़ा-ए-मक्र ने सहरा को कर दिया दरिया सराब सजने लगे हैं रमल के चेहरे पर इधर मरूँगा उधर मर के जी उठूँगा 'शजर' हयात मैं ने पढ़ी है अजल के चेहरे पर