कहीं भी रंग-ओ-बू बाक़ी नहीं है चमन की आबरू बाक़ी नहीं है तलब की कौन सी मंज़िल है यारो किसी की जुस्तुजू बाक़ी नहीं है तुम्हें चाहा तुम्हें सोचा है इतना तुम्हारी आरज़ू बाक़ी नहीं है सितम सह कर भी तुम ख़ामोश क्यों हो रगों में क्या लहू बाक़ी नहीं है 'मजीद' अब सामना है दोस्तों का यहाँ कोई अदू बाक़ी नहीं है