कहीं फ़ज़ा में कोई अब्र तैरना तो चाहिए कहाँ हवाएँ खो गई हैं सोचना तो चाहिए ये और बात बाग़ बाग़ कर गईं तबीअ'तें ज़रा क़रीब से हँसी को देखना तो चाहिए ये मस्लहत भी क्या कि दिल की वुसअ'तें हों मुंजमिद रगों में ज़िंदगी का ख़ून दौड़ना तो चाहिए मैं इन उदासियों को इन रफ़ाक़तों को क्या करूँ किरन को जागना हवा को बोलना तो चाहिए उन्हें भी नोक-ए-संग से ज़रा हिला के देख लूँ कि पानियों का ये सुकूत तोड़ना तो चाहिए ये क्या हुआ बढ़ा के सिलसिले मुझे भुला दिया कहीं मिले तो 'जाफ़र' उस से पूछना तो चाहिए