कहीं किनाए पे रखती है आरज़ू मुझ को बहा के दूर न ले जाए जुस्तुजू मुझ को मुझे सँभाल मिरे साथ चल मिरे साक़ी कि ले चला है कहीं और ये सुबू मुझ को वो पेड़ हूँ जिसे पानी नहीं मिला कब से मिरी ज़मीं ने ही रक्खा है बे-नुमू मुझ को तिरे बग़ैर मैं कैसे यहाँ चला आया बहुत उदास करेगी ये हा-ओ-हू मुझ को तुझे बताऊँ मोहब्बत में ऐसा होता है तिरी ख़मोशी भी लगती है गुफ़्तुगू मुझ को