कहीं मरने वाले कहा मानते हैं वही कर गुज़रते हैं जो ठानते हैं कोई खेल है जान पर खेल जाना वो ये कह के अक्सर हमें तान्ते हैं मिला ये जवाब आज रश्क-ए-अदू पर जो माने हमें उस को हम मानते हैं तड़प कर इधर हो गया कोई ठंडा उधर आप दामन ही गर्दानते हैं कहें क्या शब-ए-हिज्र कटती है क्यूँ-कर जो दिल पर गुज़रती है हम जानते हैं मिरे दिल की कुछ क़द्र होगी उन्हीं को जो खोटा खरा ख़ूब पहचानते हैं ये फ़िक़रे ये चालें ये घातें ये बातें तुझे ओ दग़ाबाज़ हम जानते हैं अदू से भी है सुल्ह मंज़ूर अच्छा जो अब तक न मानी थी अब मानते हैं 'हफ़ीज़' उस की जिस पर हुई मेहरबानी उसी को ज़माने में सब मानते हैं