कहीं था मैं मुझे होना कहीं था मैं दरिया था मगर सहरा-नशीं था शिकस्त-ओ-रेख़्त कैसी फ़त्ह कैसी कि जब कोई मुक़ाबिल ही नहीं था मिले थे हम तो मौसम हँस दिए थे जहाँ जो भी मिला ख़ंदाँ-जबीं था सवेरा था शब-ए-तीरा के आगे जहाँ दीवार थी रस्ता वहीं था मिली मंज़िल किसे कार-ए-वफ़ा में मगर ये रास्ता कितना हसीं था जिलौ में तिश्नगी आँखों में साहिल कहीं सीने में सहरा जा-गुज़ीं था