कहीं ठहर के न रह जाएँ धड़कनें दिल की By Ghazal << रूह का चेहरा किताबी होगा रोज़ फ़लक से नम बरसेंगे >> कहीं ठहर के न रह जाएँ धड़कनें दिल की मिज़ाज-ए-दोस्त है आमादा बरहमी के लिए नशात-ए-ज़ीस्त मयस्सर नहीं तो क्या ग़म है ग़म-ए-हयात ही काफ़ी है ज़िंदगी के लिए बहार-ए-नौ ने तबस्सुम गुलों से छीन लिया चमन में फूल तरसते हैं इक हँसी के लिए Share on: