कहने भी कुछ न पाए थे आह-ए-रसा से हम सुनना पड़ा कि आज लड़ेंगे हवा से हम ज़िद आप को असर से असर को दुआ से लाग फ़रमाइए तो हाथ उठा लें दुआ से हम पीसें किसे ये कहते हैं फ़ित्ने दम-ए-ख़िराम इतनी बड़े हुज़ूर क़यामत ज़रा से हम महशर में पाई जाम-ब-कफ़-हूर ज़ाहिदो अच्छे रहे यहाँ भी तुम्हारी दुआ से हम सोते में काम आई न कुछ चश्म-ए-नीम-बाज़ खुल खेले आज यार के बंद-ए-क़बा से हम हम जानते हैं ख़ूब अदाओं की शोख़ियाँ हम हैं अदा-शनास डरें क्या क़ज़ा से हम उठ जाए बार-ए-शर्म तो सौ फ़ित्ने हम उठाएँ कहती है वो निगाह दबे हैं हया से हम हूरों के बदले हों बुत-ए-काफ़िर हमें नसीब तुम को अगर सताएँ तो पाएँ ख़ुदा से हम करते न हम वफ़ा तो न बढ़ते जफ़ा-ओ-जौर शर्मिंदा वो जफ़ा से तो अपनी दुआ से हम मुमकिन है जा के अरसा-ए-महशर में सर उठाएँ तेरी गली में दब के रहे नक़्श-ए-पा से हम उन के लिए मज़े की सज़ा है यही 'रियाज़' महशर में माँग लेंगे बुतों को ख़ुदा से हम