कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है कहो क्या बात करती है कभी सहरा की ख़ामोशी कहा उस ख़ामुशी में भी तो इक तक़रीर होती है कहा मैं ने कि रंज-ए-बे-मकानी कब सताता है कहा जब मक़बरे या क़स्र की ता'मीर होती है कहा मैं ने हिसार-ए-ज़ात में ये नफ़्स की दुनिया जवाब आया कि सब कुछ हार कर तस्ख़ीर होती है कहा ये ख़्वाहिश-ओ-तरग़ीब और ये ख़ून के रिश्ते कहा ज़िंदानियों के पाँव में ज़ंजीर होती है कहा वो जो सवाली आँख की पुतली पे लिक्खी थी कहा सब से मोअस्सिर तो वही तहरीर होती है कहा अहल-ए-ख़िरद 'अंजुम' तुम्हें बे-कार कहते हैं कहा सिक्के की अपने देस में तौक़ीर होती है