कहता है दीवाना क्या सच क्या है अफ़्साना क्या मतलब की इस दुनिया में अपना क्या बेगाना क्या तू भी मुसाफ़िर मेरी तरह तेरा मेरा ठिकाना क्या ख़ुद में गुम हैं जब सब लोग ज़ख़्मों का दिखलाना क्या बादल बारिश साया धूप सब से धोका खाना क्या ग़म भी अपना ख़ुशियाँ भी फिर ये रोना गाना क्या दिल भी झुके तो बात बने यूँ ही सर को झुकाना क्या भूल गया मुझ को इक शख़्स अब उस का याद आना क्या तू भी 'ज़फ़र' ख़ामोश है अब बंद हुआ मय-ख़ाना क्या