कहते शब-ए-विसाल में वो बार बार हैं लाओ मियाँ वो दाम जो पहले उधार हैं शैताँ भी मुफ़लिसी में सताता है राह में ढेले हैं देख लीजिए जो माल-दार हैं दर-पर्दा मुझ से करते हैं वो जान का सवाल कहते जो दम-ब-दम वो मुझे दम मदार हैं आराम है सुरूर है क्या सुख बदन के साथ कम्बख़्त हैं जो लोग नसीबन के यार हैं अल्लह रे मुफ़लिसी कि मुझे पा के नंगे सर जूते के गाँठने से गुरेज़ाँ चमार हैं जो सैंकड़ों न लेते थे कहते हैं अब वो यूँ दिलवाओ कुछ हमें कि बहुत ज़ेर-ए-बार हैं ये धुन बंधी हुई है वतन की कि रात-दिन ग़ुर्बत में भी अलापते हम देसकार हैं शान-ए-ख़ुदा कि तान 'इनायत' पे वो करें जो लोग तानसेन के ख़ुद रिश्ता-दार हैं