क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से हम को छुड़ा लिया अच्छा किया कि आप ने अपना बना लिया होने दिया न हम ने अंधेरा शब-ए-फ़िराक़ बुझने लगा चराग़ तो दिल को जला लिया दुनिया के पास है कोई इस तंज़ का जवाब दीवाना अपने हाल पे ख़ुद मुस्कुरा लिया क्या बात थी कि ख़ल्वत-ए-ज़ाहिद को देख कर रिंद-ए-गुनाहगार ने सर को झुका लिया चुप हूँ तुम्हारा दर्द-ए-मोहब्बत लिए हुए सब पूछते हैं तुम ने ज़माने से क्या लिया ना-क़ाबिल-ए-बयाँ हैं मोहब्बत की लज़्ज़तें कुछ दिल ही जानता है जो दिल ने मज़ा लिया रोज़-ए-अज़ल पड़ी थी हज़ारों ही नेमतें हम ने किसी का दर्द-ए-मोहब्बत उठा लिया बढ़ने लगी जो तल्ख़ी-ए-ग़म-हा-ए-ज़िंदगी थोड़ा सा बादा-ए-ग़म-ए-जानाँ मिला लिया वाक़िफ़ नहीं गिरफ़्त-ए-तसव्वुर से वो 'शमीम' जो ये समझ रहे हैं कि दामन छुड़ा लिया