कैफ़-ए-सहबा से नहीं हुस्न तरहदारी का दूसरा नाम जवानी भी है सरशारी का हल्क़ा-ए-दाम-ए-सियासत ख़म-ए-गेसू-ए-बुताँ हर तरफ़ दाम बिछा दिल की गिरफ़्तारी का शाना-कुश रेशमी बालों के ज़रा आहिस्ता कुफ़्र पुख़्ता है कहाँ आज की ज़ुन्नारी का लज़्ज़त-ए-ज़ख़्म से आगाह नहीं थी दुनिया सिलसिला गुल से चला है जिगर-अफ़गारी का अश्क पलकों पे सजा लेने दो अहल-ए-ग़म को इन सितारों को भी मौक़ा दो ज़िया-बारी का बाज़ रहिए सर-ए-गुल-गश्त-ए-चमन से कब तक संग-बारी का जो मौसम वही गुल-बारी का शैख़ का'बे से कोई रंग न ले कर उट्ठे तितलियाँ कर के तवाफ़ आई हैं फुलवारी का बुझ के रह जाता है गिरते ही किसी दामन पर इश्क़ में सोज़-ए-जिगर चाहिए चिंगारी का नीम-बाज़ आँखें लरज़ती हुई पलकें 'मानी' जैसे एहसास शगूफ़ों में हो बेदारी का