कैसा सामाँ कैसी मंज़िल कैसी रह कैसा सफ़र हम-सफ़र ही जब नहीं है कैसे फिर होगा सफ़र नफ़्स-ए-अम्मारा से नफ़्स-ए-मुतमइन्ना तक की रह आतिशीं मौसम ज़मीं पुर-ख़ार और तन्हा सफ़र हसरत-ए-दीदार ऐसी फ़ैसला-कुन थी मिरी लम्हे भर में हो गया इक उम्र सा लम्बा सफ़र पहले मंज़िल सामने थी अब नज़र से दूर है जाने कैसे क्या हुआ किस मोड़ पर भटका सफ़र इन चटानों में कहाँ ये हौसला रोकें मुझे करता हूँ 'जावेद' मैं भी सूरत-ए-दरिया सफ़र