क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते

क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते
कुछ तो अपनी सी चारागर करते

मौत की नींद सो गए बीमार
रोज़ किस शाम को सहर करते

सच है हर नाला क्यूँ रसा होता
मेरे नाले थे क्यूँ असर करते

ख़ुद वफ़ा क्या वफ़ा का बदला क्या
लुत्फ़ एहसान था अगर करते

कर लिया तेरे नाम पर सज्दा
अब कहाँ क़स्द-ए-संग-ए-दर करते

आस होती तो इस सहारे पर
सब्र मुमकिन न था मगर करते

काश आईना हाथ से रख कर
तुम मिरे हाल पर नज़र करते

तूल-ए-रूदाद-ए-ग़म मआज़-अल्लाह
उम्र गुज़री है मुख़्तसर करते

ग़म ने मोहलत न दी कि हम 'फ़ानी'
और कुछ दिन अभी बसर करते


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close