क़िस्सा-ए-शौक़ के उन्वान दिल-आराम कई मैं ने किस प्यार से रक्खे हैं तिरे नाम कई टुकटुकी बाँध के बस दूर से तकते रहना वस्ल में मिलते हैं अब हिज्र के आलाम कई उक़्दा-ए-जाँ को है अब तक तिरे नाख़ुन से उमीद किस को मा'लूम अधूरे हैं मिरे काम कई दिल-ए-ज़िंदा से है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-हयात सर-ए-सौदा-ज़दा क़ाएम है तो इल्ज़ाम कई वादी-ए-संग से अंजान गुज़रने वाले ना-तराशीदा रहे जाते हैं असनाम कई कुछ न कुछ कहती थी वो आँख दम-ए-रुख़्सत-ए-शौक़ ले के उट्ठा हूँ किसी बज़्म से औहाम कई जैसे हर एक दरीचे में तिरा चेहरा हो यूँ मिरे हाल पे हँसते हैं दर-ओ-बाम कई 'शाज़' अब उस की ख़मोशी को दुआ देना है जिस ने भेजे थे मुझे नामा-ओ-पैग़ाम कई