कैसे गुज़र सकेंगे ज़माने बहार के चुप हो गया हूँ मौसम-ए-गुल को पुकार के या मेरी ज़िंदगी में उजाला करे कोई या फेंक दे कहीं ये सितारे उतार के झोली में गुल तो क्या कोई काँटा ही डाल दो मायूस तो न हो कोई दामन पसार के दिल पर भी आओ एक नज़र डालते चलें शायद छुपे हुए हों यहीं दिन बहार के आँखों में आँसुओं की तरह तैरने लगे भीगे हुए ख़याल लब-ए-जू-ए-बार के दहकी हुई फ़ज़ाओं में जाएँ कहाँ तुयूर साए भी जब घने न रहें शाख़-सार के 'शहज़ाद' किस ज़मीं को मैं अपना वतन कहूँ आवारगान-ए-इश्क़ हुए किस दयार के