कैसे हर दर्द को सीने में छुपाए रक्खें और होंटों पे तबस्सुम को सजाए रक्खें जो थे अपने वो ज़माना हुआ सब छोड़ गए कब तलक बज़्म को ग़ैरों से सजाए रक्खें ये सुना है कि वहाँ देर है अंधेर नहीं तो चलो बहर-ए-दुआ हाथ उठाए रक्खें जब ये छट जाएँगे बादल तो किरन फूटेगी शम्अ' उम्मीद की इक हम भी जलाए रक्खें यूँ तो भूले से भी अब याँ न कोई आएगा एहतियातन ही मगर घर को सजाए रक्खें दिल में सोई हुई चिंगारी ने करवट ली है अब तो इस आग से दामन को बचाए रक्खें होगा 'निकहत' से मोअ'त्तर ये चमन भी इक रोज़ बस तिरी याद के पौदों को लगाए रक्खें