कैसे झेलें अज़ाब ख़तरा है आप हैं बे-नक़ाब ख़तरा है अपनी दहलीज़ तक रहें साहिब लौट जाएँ जनाब ख़तरा है बाग़बानी है मेरे हाथों में गुल है ज़ेर-ए-इताब ख़तरा है हम तही-दस्त हैं किधर जाएँ हर तरफ़ बे-हिसाब ख़तरा है रेगज़ारों में अब बहार आए जल रहे हैं गुलाब ख़तरा है रात आँखों में जब गुज़र जाए बंदिश-ए-इज़्तिराब ख़तरा है