कैसे कैसे ख़्वाब अब हम को दिखाते हैं ये लोग एक पागल को यहाँ पागल बनाते हैं ये लोग जाने क्या इस में रक़म कर डाला था तू ने बता इतनी नफ़रत से जो तेरा ख़त जलाते हैं ये लोग मेरी फ़ितरत है मुझे मुश्किल-पसंदी का है शौक़ इस लिए अक्सर ही मुझ को आज़माते हैं ये लोग है गुनाहों पर मुझे अफ़्सोस और वो देखिए शर्मसारी से यहाँ पर मुँह छुपाते हैं ये लोग जब से ये ज़ाहिर हुआ कि दिल मेरा है आईना मुझ को आता देख कर पत्थर उठाते हैं ये लोग राख के इक ढेर में तब्दील होगा एक दिन फिर न जाने क्यों बदन इतना सजाते हैं ये लोग मैं सराए के निगहबाँ की तरह तन्हा रहा दिल में मेहमाँ की तरह अब आते जाते हैं ये लोग रास आता ही नहीं है सब्र का फल क्यों उन्हें जल्द-बाज़ी में हमेशा मुँह की खाते हैं ये लोग उम्र भर लड़ता रहा जिन के लिए मैं ख़ुद 'अज़ान' बन के अब मेरे मुख़ालिफ़ सर उठाते हैं ये लोग