कैसे पीतम के नयन राम हुआ करते थे वो जो राधा थी तो हम शाम हुआ करते थे दिल के सब ज़ख़्म तिरे नाम हुआ करते थे वो यूँही शहर में बदनाम हुआ करते थे जिन चराग़ों पे हैं अब तोहमतें बे-नूरी की वो हवाओं में सर-ए-बाम हुआ करते थे आओ फिर हिज्र-ए-मुसलसल की रुतों में ढूँडें का'बा-ए-दिल में जो असनाम हुआ करते थे मौसम-ए-क़हत में आँखों से छलक जाते हैं चंद क़तरे जो तह-ए-जाम हुआ करते थे अब तो गुज़रे हुए लम्हे भी भुला बैठे हैं वर्ना हम साहिब-ए-इल्हाम हुआ करते थे अब जो आग़ाज़-ए-मोहब्बत से गुरेज़ाँ हैं वो लोग बे-नियाज़-ए-ग़म-ए-अंजाम हुआ करते थे अजनबी बन के जो मिलते हैं 'रज़ी' राहों में उन को हम से भी कभी काम हुआ करते थे