कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता जो समझ पाए न आँखों का नज़र से रिश्ता मो'तबर सर ही बना लो तो बहुत अच्छा है कम ही रह पाता है दस्तार का सर से रिश्ता है ग़रीबों का अमीरों से तअ'ल्लुक़ इतना जितना होता है चराग़ों का सहर से रिश्ता बे-असर जब हैं ज़बानें तो किया क्या जाए वर्ना रखती हैं दुआएँ भी असर से रिश्ता हम ने रुस्वाई की उस वक़्त से चादर ओढ़ी जिस घड़ी तोड़ दिया था तिरे दर से रिश्ता दिल का रिश्ता भी अगर सोचो तो क्या रिश्ता है निभ रहा है इसी रिश्ते के असर से रिश्ता जुस्तुजू उस की ख़ुदा जाने है किस मंज़िल तक ख़त्म होता नहीं 'अख़्तर' का सफ़र से रिश्ता