कैसी नज़रों से तकते हो तुम भी ना फिर अंजान से बन जाते हो तुम भी ना वस्ल की ख़्वाहिश से लबरेज़ तुम्हारा दिल फिर भी जाने का कहते हो तुम भी ना जज़्बों का तूफ़ान छुपा है सीने में लेकिन फिर भी चुप रहते हो तुम भी ना दिल की बात लबों पर ले आते हो तुम लेकिन बात बदल देते हो तुम भी ना शाएरा होने पर तुम मेरे ख़ुश नहीं पर दिल ही दिल में ख़ुश होते हो तुम भी ना जाने वाला आ नहीं सकता पता भी है फिर भी रस्ता देख रहे हो तुम भी ना अंदर का पिघलाव आँख से बह निकला लेकिन पत्थर बने हुए हो तुम भी ना