कज-फ़हम से क्या दिल की हिकायात कहें हम बेहतर है जो समझें सो वही बन के रहें हम हो रौ में तिरी चश्म-ए-बला-ख़ेज़ का दरिया इस नूर के सैलाब में इक बार बहें हम जो कैफ़ तिरे क़ुर्ब में है और कहाँ है देख आए हैं वैसे तो बहुत ऐश-गहें हम थी झीलों की आग़ोश में गहराई जहाँ पर छोड़ आए परिंदों की तरह ऐसी जगहें हम आमद का तिरी जब कोई इम्कान नहीं है कब तक दिल-ए-बे-ताब यूँही थाम रखें हम जो अक्स वो चाहें वही आईना दिखाए वो देखें हमें जैसे 'ख़िराम' उन को दिखें हम