कल ऐ आशोब-ए-नाला आज नहीं आज हंगामा पर मिज़ाज नहीं ग़ैर उस के कि ख़ूब रोइए और ग़म-ए-दिल का कोई इलाज नहीं अब भी क़ीमत है दिल की गोशा-ए-चशम इतनी ये जिंस बे-रिवाज नहीं शह को भी चाहिए है गोर-ओ-कफ़न कौन है जिस को एहतियाज नहीं दिल से बस हाथ उठा तू अब ऐ इश्क़ देह-ए-वीरान पर ख़िराज नहीं दो-जहाँ भी मिलें तो बस है हमें याँ कुछ इतनी तो एहतियाज नहीं कर न जुरअत तू ऐ तबीब कि ये दिल का धड़का है इख़्तिलाज नहीं मैं तो 'क़ाएम' कहे था तुझ से आह दिल-ए-नाज़ुक है ये ज़ुजाज नहीं