कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था मैं जिस को ढूँढता था मिरे आइने में था जिस की निगाह में थीं सितारों की मंज़िलें वो मीर-ए-काएनात उसी क़ाफ़िले में था रहगीर सुन रहे थे ये किस जश्न-ए-नौ का शोर कल रात मेरा ज़िक्र ये किस सिलसिले में था रक़्साँ थे रिंद जैसे भँवर में शफ़क़ के फूल जो पाँव पड़ रहा था बड़े क़ाएदे में था छिड़का जिसे अदम के समुंदर पे आप ने सहरा तमाम ख़ाक के उस बुलबुले में था मन्नत-गुज़ार-ए-अहल-ए-हवस हो सका न दिल हाइल मिरा ज़मीर मिरे रास्ते में था है फ़र्ज़ इस अता-ए-जुनूँ का भी शुक्रिया लेकिन ये बे-शुमार करम किस सिले में था अब आ के कह रहे हो कि रुस्वाई से डरो ये बाल तो कभी का मिरे आईने में था सुनता हूँ सर-निगूँ थे फ़रिश्ते मिरे हुज़ूर मैं जाने अपनी ज़ात के किस मरहले में था हैं सब्त मेरे दिल पे ज़माने की ठोकरें मैं एक संग-ए-राह था जिस रास्ते में था कुछ भी न था अज़ल में ब-जुज़ शो'ला-ए-वजूद हाँ दूर तक अदम का धुआँ हाशिए में था मैं ने जो अपना नाम पुकारा तो हँस पड़ा ये मुझ सा कौन शख़्स मिरे रास्ते में था थी नुक़्ता-ए-निगाह तक आज़ादी-ए-अमल परकार की तरह मैं रवाँ दाएरे में था ज़ंजीर की सदा थी न मौज-ए-शमीम-ए-ज़ुल्फ़ ये क्या तिलिस्म उन के मिरे फ़ासले में था अब रूह ए'तिराफ़-ए-बदन से है मुन्हरिफ़ इक ये भी संग-ए-मील मिरे रास्ते में था 'दानिश' कई नशेब-ए-नज़र से गुज़र गए हर रिंद आइने की तरह मय-कदे में था