कल तक जो दिल ग़ुरूर-ए-जलाल-ओ-जमाल था आज उन के रास्ते में पड़ा पाएमाल था ज़ंजीर थी कहीं न कहीं कोई जाल था लेकिन तिरी फ़ज़ा से निकलना मुहाल था था तीर उन के पास वही एक बे-नज़ीर और ज़ख़्म जो लगा वो भी अपनी मिसाल था उस ने भला कहा कि बुरा उस की ख़ैर हो मैं सुन के चुप रहा तो ये मेरा कमाल था चुप-चाप सर झुकाए हुए मैं गुज़र गया मैं जानता था जो तिरी बस्ती का हाल था अच्छा हुआ गुज़र गया 'अख़्तर' जहान से मुद्दत से वो 'सईद' के ग़म में निढाल था