क़लम हो जाए सर पर्वा न करना अमीर-ए-शहर को सज्दा न करना किया तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तुम ने बेहतर मगर उस का कहीं चर्चा न करना मुझे तुर्बत में अज़-हद आफ़ियत है मसीहा अब मुझे ज़िंदा न करना बढ़ाता है कसल दूरी-ए-मंज़िल ख़याल-ए-वुसअ'त-ए-सहरा न करना कठिन हो जाएगी मंज़िल-शनासी कभी मस्ख़ उन का नक़्श-ए-पा न करना मोहब्बत में ये है दस्तूर-ए-दुनिया ज़रा सी बात को इफ़्शा न करना ये है अब इक तरीक़ा गुफ़्तुगू का किसी के सामने लब वा न करना तुम्हारे मुँह पे वो सच बोल देगा मुक़ाबिल अपने आईना न करना मुनासिब है कि 'आजिज़' तौबा कर लो न तज़हीक-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना करना