क़लक़ आ गया इज़्तिराब आ गया ये दिल क्या गया इक अज़ाब आ गया लिफ़ाफ़े में पुर्ज़े मिरे ख़त के हैं मिरे ख़त का आख़िर जवाब आ गया इधर बढ़ते बढ़ते बढ़ा दस्त-ए-शौक़ उधर आते आते हिजाब आ गया कहा उस ने देखा जो दर पर मुझे कहाँ से ये ख़ाना-ख़राब आ गया जबीं पुर-शिकन है निगह शोला-रेज़ ये कौन आज ज़ेर-ए-इताब आ गया सिकंदर नसीबे का है वो फ़क़ीर तिरे दर से जो कामयाब आ गया ये आलम हुआ ताबिश-ए-हुस्न से सवा नेज़े पर आफ़्ताब आ गया हुए ही थे आमादा तौबा पे हम कि गर्दिश में जाम-ए-शराब आ गया हुई क़ाइल-ए-जलवा-ए-तूर ख़ल्क़ सर-ए-बाम वो बे-नक़ाब आ गया ये क्या कम है ऐ शैख़ मय का जवाज़ वो काबे से उठ कर सहाब आ गया उठाए गए बज़्म से बुल-हवस उन्हें शेवा-ए-इन्तिख़ाब आ गया अदू साथ रहने लगे ऐ 'वफ़ा' गहन में मिरा आफ़्ताब आ गया