काम इश्क़-ए-बे-सवाल आ ही गया ख़ुद-ब-ख़ुद उस को ख़याल आ ही गया तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र दिल के आईने में बाल आ ही गया दो मिरी गुस्ताख़ नज़रों को सज़ा फिर वो ना-गुफ़्ता सवाल आ ही गया ज़िंदगी से लड़ न पाया जोश-ए-दिल रफ़्ता रफ़्ता ए'तिदाल आ ही गया हुस्न की ख़ल्वत में दर्राता हुआ इश्क़ की देखो मजाल आ ही गया ग़म भी है इक पर्दा-ए-इज़हार-ए-शौक़ छुप के आँसू में सवाल आ ही गया वो उफ़ुक़ पर आ गया मेहर-ए-शबाब ज़िंदगी का माह-ओ-साल आ ही गया बे-ख़ुदी में कह चला था राज़-ए-दिल वो तो कहिए कुछ ख़याल आ ही गया हम न कर पाए ख़ता बुज़दिल ज़मीर ले के तस्वीर-ए-मआ'ल आ ही गया इब्तिदा-ए-इश्क़ को समझे थे खेल मरने जीने का सवाल आ ही गया लाख चाहा हम न लें ग़म का असर रुख़ पे इक रंग-ए-मलाल आ ही गया बच के जाओगे कहाँ 'मुल्ला' कोई हाथ में ले कर गुलाल आ ही गया