कमाँ में खींच है पहले सी और न तीर में रंग लहू बहेगा तो आएगा जू-ए-शीर में रंग जुनून-ए-हुस्न-परस्ती भी दे दिया यारब कि पहले कम तो नहीं थे मिरे ख़मीर में रंग ये किस के दर से मिली है सिकंदरी मुझ को ये कौन डाल गया कासा-ए-फ़क़ीर में रंग महल बनाऊँगा क़ौस-ए-क़ुज़ह का तेरे लिए ठहर गए जो कभी हाथ की लकीर में रंग तू ख़ाक होने से पहले ये एहतिमाम तो कर अमल बिछा दें रह-ए-मुनकर-ओ-नकीर में रंग जुदाइयों के परिंदे उन्हें उड़ा लेंगे हिना से बाँध तो लूँ हाथ की लकीर में रंग तुम्हारे हुस्न-ए-तअल्लुक़ में रंग भरता हूँ भरे हैं शे'र से वारिस ने जैसे हीर में रंग