क़ामत-ए-यार को हम याद किया करते हैं

क़ामत-ए-यार को हम याद किया करते हैं
सर्व को सदक़े में आज़ाद किया करते हैं

ज़ुल्फ़-ए-शब-रंग को हम याद किया करते हैं
शब-ए-तारीक में फ़रियाद किया करते हैं

निगह-ए-यार को हम याद किया करते हैं
देख कर बर्क़ को फ़रियाद किया करते हैं

कूचा-ए-यार को हम याद किया करते हैं
जा के गुलज़ार में फ़रियाद किया करते हैं

घर जो बे-यार है वीराँ तो तसव्वुर में मुदाम
ख़ाना-ए-दिल को हम आबाद किया करते हैं

रश्क से नाम नहीं लेते कि सुन ले न कोई
दिल ही दिल में उसे हम याद किया करते हैं

गुज़रे हैं कूचा-ए-काकुल से सबा के झोंके
निकहत-ए-गुल को जो बर्बाद किया करते हैं

होते हैं जाते ही मकतब में परी-रू ख़ूँ-रेज़
क्या ये जल्लादों को उस्ताद किया करते हैं

फूँक दें नाला-ए-सोज़ाँ से अगर चाहें क़फ़स
हम फ़क़त ख़ातिर-ए-सय्याद किया करते हैं

होती है आफ़त-ए-ख़त क़हर-ए-ख़ुदा से नाज़िल
ये सनम हम पे जो बेदाद किया करते हैं

मलक-उल-मौत अगर कहिए उन्हें तो है बजा
क़त्ल बे-तेग़ परी-ज़ाद किया करते हैं

तू वो सय्याद है जो वार के तुझ पर लाखों
ताएर-ए-रूह को आज़ाद किया करते हैं

इंतिक़ाम इस का कहीं ले न फ़लक डरता हूँ
झूटे वा'दों से जो वो शाद किया करते हैं

तेरा दीवान है क्या सामने उन के 'नासिख़'
जो कि क़ुरआन पे ईराद किया करते हैं


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