मअ'रका ख़त्म हुआ जंग अभी जारी है दिल की मानें कि ख़िरद की यही दुश्वारी है कोई पत्ता नहीं हिलता है न खुलती है ज़बाँ आह फिर से किसी तूफ़ान की तय्यारी है क्यूँ न ये देख के बीनाई दग़ा दे जाए शम्स पर भी अभी ज़ुल्मत का फ़ुसूँ तारी है अब ये हसरत भी लिए जाते हैं दिल की दिल में ये तो कह लेते तिरा तीर बहुत कारी है हाए कम-ज़र्फ़ी-ए-दिल तू ने कहीं का न रखा आह ने कह दिया ताज़ीर बहुत भारी है तेरे मश्कूर हैं हमदम किया वाज़ेह तू ने फ़ेअ'ल-ए-ग़ारत-गरी सय्याद की नाचारी है वक़्त-ए-फ़ुर्क़त ये करम 'सोज़' पे बरपा कर दे हँस के कह दे कि ये इनआम-ए-वफ़ादारी है