काँपते होंटों से जब भी वो दुआ करता है लफ़्ज़-ए-आमीन हर इक ज़र्रा कहा करता है हर सितारे में चराग़ाँ का समाँ है जैसे कौन ख़्वाबों के जज़ीरों में रहा करता है कितने अफ़्साने सुना देती है वो एक नज़र दिल तो मासूम है चुप-चाप सुना करता है तुम ये बतलाओ शब-ओ-रोज़ गुज़ारे कैसे हिज्र में चाँद तो आवारा फिरा करता है हम को मालूम है गुज़रे हुए मौसम का पता तेरी यादों के ख़याबाँ में रहा करता है शाम आती है जलाती हुई तारों के चराग़ और उसी वक़्त दिया दिल का बुझा करता है दिल की दीवार में दुख का कोई रौज़न ही नहीं पत्थरों की तरह इंसान जिया करता है दिल के जज़्बात दबाए नहीं दबते 'ज़हरा' चढ़ता दरिया कहीं रोके से रुका करता है