कर के क़ौल-ओ-क़रार क्या कहना ओ फ़रामोश-कार क्या कहना हो के नादिम गुनह से पाक हुआ वाह रे शर्मसार क्या कहना काम बिगड़े तू ही बनाता है ऐ मिरे किर्दगार क्या कहना ख़ूब तू ने सुनी लगी दिल की वाह रे ग़म-गुसार क्या कहना दिन को तारे दिखा दिए तू ने ऐ शब-ए-इंतिज़ार क्या कहना ख़ाक में भी मिला के ऐ ज़ालिम न किया ए'तिबार क्या कहना दिल-ए-हसरत-ज़दा रहा न रहा उस का क़ौल-ओ-क़रार क्या कहना उस से हाल-ए-ग़म-ए-दिल-ए-मज़लूम जो न हो शर्मसार क्या कहना बा-वफ़ाई भी तेरी ऐ दिल-ए-ज़ार रह गई यादगार क्या कहना न सुने एक बार जो दिल की उस से फिर बार बार क्या कहना ख़ुम के ख़ुम 'शौक़' कर दिए ख़ाली ऐ मिरे बादा-ख़्वार क्या कहना