करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले इस इल्तिफ़ात का उनवाँ खुले तो बात चले किस इंतिज़ार में थी रूह-ए-ख़ुद-नुमाई-ए-गुल बरस के अब्र-ए-बहाराँ खुले तो बात चले कुछ अब के हम भी कहें उस की दास्तान-ए-विसाल मगर वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ खुले तो बात चले जफ़ा ये सिलसिला-ए-सद-हज़ार-उनवाँ है क़मीस-ए-यूसुफ़-ए-कनआँ खुले तो बात चले सफ़र है और सितारों का इक बयाबाँ है मुसाफ़िरी का भी इम्काँ खुले तो बात चले तिलिस्म-ए-शेवा-ए-याराँ खुला तो कुछ न हुआ कभी ये हब्स-ए-दिल-ओ-जाँ खुले तो बात चले सुलग रहा है उफ़ुक़ बुझ रही है आतिश-ए-महर रुमूज़-ए-रब्त-ए-गुरेज़ाँ खुले तो बात चले