करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से मुझे सू-ए-ज़न नहीं है कि दुआ करूँ ख़ुदा से दिल-ए-मुतमइन की वुसअ'त कोई कम है मा-सिवा से मुझे काहे की कमी है जो तलब करूँ ख़ुदा से हुई ख़त्म ग़म की आँधी वही दिल की लौ है अब भी यही शो'ला था वो शो'ला कि लड़ा किया हवा से कहे कौन उसे पतिंगा जो है शो'ले पर धुआँ सा तुझे ले उड़े हैं कितना तिरे पर ज़रा ज़रा से जो है सब का देने वाला मैं उसी को चाहता हूँ मिरी भीक वो नहीं है कि मिले किसी गदा से ये है क़स्र-ए-ज़िंदगानी कि हबाब-ए-बहर-ए-फ़ानी अभी बन गया हवा से अभी मिट गया हवा से ये ख़याल ख़ुद है ऐसा जो ख़ुशी बना दे ग़म को कि है इब्तिदा ख़ुशी की मिरे ग़म की इंतिहा से मिरा दिल रज़ा पे राज़ी करम उस का जोश पर है जो अब आ गई ज़बाँ तक तो असर गया दुआ से मिरी लाख मिन्नतों पर तिरी इक हया है भारी कोई पर्दा है वो पर्दा कि हिले-डुले हवा से तिरे पाक-बाज़-ए-उल्फ़त नहीं हारने के हिम्मत जो मरेंगे डूब कर भी तो मरेंगे रह के प्यासे किसी दिल की आस यूँ भी कभी 'आरज़ू' न टूटे ये कहे बनी है दम पर वो कहे मिरी बला से