क़रार-ए-जाँ भी तुम्ही इज़्तिराब-ए-जाँ भी तुम्ही मिरा यक़ीं भी तुम्ही हो मिरा गुमाँ भी तुम्ही तुम्हारी जान है निकहत तुम्हारा जिस्म बहार मिरी ग़ज़ल भी तुम्ही मेरी दास्ताँ भी तुम्ही ये क्या तिलिस्म है दरिया में बन के अक्स-ए-क़मर रुके हुए भी तुम्ही हो रवाँ-दवाँ भी तुम्ही ख़ुदा का शुक्र मिरा रास्ता मुअ'य्यन है कि कारवाँ भी तुम्ही मीर-ए-कारवाँ भी तुम्ही तुम्ही हो जिस से मिली मुझ को शान-ए-इस्तिग़ना कि मेरा ग़म भी तुम्ही ग़म के राज़-दाँ भी तुम्ही निहाँ हो ज़ेहन में विज्दान का धुआँ बन कर उफ़ुक़ पे मंज़िल-ए-इदराक का निशाँ भी तुम्ही तमाम हुस्न-ए-अमल हों तमाम हुस्न-ए-बयाँ कि मेरा दिल भी तुम्ही हो मिरी ज़बाँ भी तुम्ही