करेंगे शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल खोल कर अपना कि ये मैदान-ए-महशर है न घर उन का न घर अपना मकाँ देखा किए मुड़ मुड़ के ता-हद्द-ए-नज़र अपना जो बस चलता तो ले आते क़फ़स में घर का घर अपना बहे जब आँख से आँसू बढ़ा सोज़-ए-जिगर अपना हमेशा मेंह बरसते में जला करता है घर अपना पसीना अश्क हसरत बे-क़रारी आख़िरी हिचकी इकट्ठा कर रहा हूँ आज सामान-ए-सफ़र अपना ये शब का ख़्वाब या-रब फ़स्ल-ए-गुल में सच न हो जाए क़फ़स के सामने जलते हुए देखा है घर अपना दम-ए-आख़िर इलाज-ए-सोज़-ए-ग़म कहने की बातें हैं मिरा रस्ता न रोकें रास्ता लें चारा-गर अपना निशानात-ए-जबीं जोश-ए-अक़ीदत ख़ुद बता देंगे न पूछो मुझ से सज्दे जा के देखो संग-ए-दर अपना जवाब-ए-ख़त का उन के सामने कब होश रहता है बताते हैं पता मेरे बजाए नामा-बर अपना मुझे ऐ क़ब्र दुनिया चैन से रहने नहीं देती चला आया हूँ इतनी बात पर घर छोड़ कर अपना शिकन-आलूद बिस्तर हर शिकन पर ख़ून के धब्बे ये हाल-ए-शाम-ए-ग़म लिक्खा है हम ने ता-सहर अपना यही तीर-ए-नज़र तो हैं मिरे दिल में हसीनों के जो पहचानो तो लो पहचान लो तीर-ए-नज़र अपना 'क़मर' उन को न आना था न आए सुब्ह होने तक शब-ए-व'अदा सजाते ही रहे घर रात भर अपना ज़मीं मुझ से मुनव्वर आसमाँ रौशन मिरे दम से ख़ुदा के फ़ज़्ल से दोनों जगह क़ब्ज़ा 'क़मर' अपना