कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है बर्क़-ए-ख़िर्मन-ए-राहत ख़ून-ए-गर्म-ए-दहक़ाँ है ग़ुंचा ता शगुफ़्तन-हा बर्ग-ए-आफ़ियत मालूम बा-वजूद-ए-दिल-जमई ख़्वाब-ए-गुल परेशाँ है हम से रंज-ए-बेताबी किस तरह उठाया जाए दाग़ पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ शो'ला ख़स-ब-दंदाँ है इश्क़ के तग़ाफ़ुल से हर्ज़ा-गर्द है आलम रू-ए-शश-जिहत-आफ़ाक़ पुश्त-ए-चश्म-ए-ज़िन्दाँ है