कर्गस को सुरख़ाब बनाना चाहोगे हासिल को नायाब बनाना चाहोगे क्या मुश्किल को मुश्किल ही रहने दोगे दरिया को पायाब बनाना चाहोगे चश्म-ए-करम की लज़्ज़त भी मिल जाएगी आँखों को ख़ूनाब बनाना चाहोगे बज़्म-ए-चमन वीरान है तुम कब आओगे कब इस को शादाब बनाना चाहोगे जिस के किनारे प्यासा प्यासा मर जाए पानी को तेज़ाब बनाना चाहोगे जंगल जंगल आग लगाए जाते हो शो'लों में गिर्दाब बनाना चाहोगे सज्दा करने देगी ये मग़रूर अना पेशानी महताब बनाना चाहोगे