करो कुछ और क़यामत का इंतिज़ार अभी मिरी ज़मीन का उजड़ा नहीं सिंघार अभी 'अता किए हैं बहुत बेबसी के दस्ताने उमीद कितनी लगाए हैं शहरयार अभी ज़मीं अगरचे नए क़हत की लपेट में है रुका नहीं है मगर दस्त-ए-किर्दगार अभी चलो दु'आ के चराग़ों की लौ बढ़ाते चलें मिलेंगे और भी दश्त-ए-सियाहकार अभी अभी से कैसे शब-ए-हिज्र की सज़ा दे दें कि उस की गोद में है शाम की बहार अभी क़बा पे रंग पड़ा है तो इतनी वहशत क्या लिबास-ए-जिल्द भी होना है तार-तार अभी ग़रीब आँख की पुतली की हिम्मतों के निसार हुआ नहीं है अँधेरों पे इंहिसार अभी कोई सुने न सुने तू सुनाए जा 'बाक़र' तिरे सितार में बाक़ी है एक तार अभी